सफलता में साहस का महत्व-1
(कबीर साहब के शब्दो में )
मित्रों ,हम सभी साहस शब्द से परिचित है, फिर भी कुछ शब्द ऐसे हैं जिन पर जितना मंथन किया जाए वह कम ही है। कुछ इसी तरह का शब्द साहस भी है। साहस शब्द को हम अगर परिभाषित करें तो कहा जा सकता है कि विशेष स्थिति/परिस्थिति में गंभीर निर्णय लेकर कुछ कर गुजरने की क्षमता ही साहस है।
मित्रों ,कबीर साहब ने इस साहस शब्द को लेकर सामने से तो कोई पंक्ति नही कहा परन्तु निचे लिखे पंक्तियों में साहस का जिक्र अन्य प्रकार से हुआ है। जो निम्नवत है :-
दोहा :- जिन खोजा तिन पाइयाँ ,गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
शब्दार्थ :- जिन - जिन लोगों ने।
खोजा -ढूढ़ने की कोशिश ,जानने का प्रयास करना।
तिन - वह लोग जो खोजने के काम में लगे रहे।
पाइयाँ- प्राप्त कर लेना।
पैठ - पहुँच कर ,जा कर।
बपुरा- बेचारा सा होना , लाचार सा होना।
बूडन - डूबना ,पानी की गहराइयों में चले जाना।
डरा - भय की स्थिति में कुछ भी निर्णय न कर पाना।
दोहे का अर्थ :- जिन लोगों ने ढूढ़ा ,वे सब गहरे पानी में उतर कर पा लिए , मगर मैं डूबने के डर से लाचार सा खाली हाथ बैठा रहा और मुझे कुछ भी नही मिला।
मित्रों , कबीर साहब के द्वारा कहे गए इस पंक्ति का सामान्य संदेश तो यही है कि कबीर साहब ने मन में विचार तो रखा कि विशेष वस्तु मुझे मिल जाए मगर कबीर साहब ने उस वस्तु को हासिल लिए जो सामर्थ प्रस्तुत करना चाहिए था ,वह नही किया। क्यों कि उन्हें डूब कर मर जाने का डर सता रहा था अर्थात पानी की गहराइयों में, जहाँ से विशेष वस्तु मिलनी थी ,वहाँ तक जाने का साहस ही नही कर पाए।
मित्रों , हममें से बहुत से लोगों के साथ ऐसा हुआ है कि हम किसी विशेष कार्य सफलता की आस मन में लेकर किसी कार्य में लग जाते है मगर जब बात मुश्किलों से गुजरने की आती है तो बच निकलने का प्रयास शुरू कर देते है। यही हमारे पूर्ण सफलता में बाधक बन जाता है।
मित्रों, हमारे समाज में "पे एंड सर्विस" का चलन जोरों पर है। हर प्रकार की सेवाएं हम सभी लोग रूपये दे कर लेते है। हम सभी जानते है कि जहाँ हम रूपये देते है वहीं हमें सेवा उपलब्ध होती है। इसके लिए हर प्रकार की दुकानें एवं प्रतिष्ठान उपलब्ध हैं। अब आप इसी को उल्टा कर दे ,अब आप सेवा दें ,आप कोई दुकान या अपना प्रतिष्ठान बना लें और आप कोई भी वेहतर सेवा दें, आपको रूपये मिलेंगे। यदि विज्ञान की भाषा में कहा जाये तो न्यूटन महाशय का तीसरा सिद्धान्त, कबीर साहब ने अपनी पंक्ति में कहने का प्रयास किया था। हम जिस सामर्थ, त्याग और समर्पण से किसी कार्य को करेंगे उसका परिणाम उतना ही सुन्दर और अच्छा होगा।
अतः हमें संघर्ष से घबराना नही चाहिए। मेहनत एवं लगन से काम करने वाले निश्चित रूप से सफलता को प्राप्त करते है।
प्रणाम
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