सफलता में साहस का महत्व -2 (आध्यत्मिक अर्थ )
मित्रों, कबीर साहब के दोहा जिसकी चर्चा हमने सफलता में साहस का महत्व -1 में की हैं ,उसी का आध्यात्मिक भाव तलाश करेंगे।
दोहा :- जिन खोजा तिन पाइयाँ ,गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
मित्रों ,चुकि कबीर साहब अपने समय के आध्यात्मिक एवं समाज सुधारक के रूप में जाने जाते थे इसलिए उनके द्वारा कहे गए पंक्तियों को बिना गहराई से समझे कुछ भी अर्थ लगाना बचकानी बात सिद्ध होगी। अतः हमें उपरोक्त दोहे को ठीक तरह से समझना होगा।
मित्रों ,उपरोक्त पंक्ति का आद्यात्मिक पहलु तलाश करने पर आप को ज्ञात होगा कि कबीर साहब उन लोगों को साहसी नही मानते थे जो लोग किसी भी कारण बस आध्यात्मिकता की समझ या अपने जीवन की वारिकियों को नही समझ सके।
मित्रों,इस संसार में जो भी व्यक्ति (स्त्री ,पुरुष या कोई तीसरा लिंग )पैदा हुआ और यदि वह सामान्य मन मष्तिस्क का है तो उसके जीवन में किसी न किसी पल जरूर यह विचार उसके मन में आया होगा कि जीवन का सार तत्व क्या है। अन्यथा हम में से अधिकांश लोग आख़िर क्यों मंदिर ,मस्जिद चर्च अथवा गुरुद्वारे जाते। सभी के मन में एक जिज्ञासा आवश्य होती है उसी को कबीर साहब कहते है कि जो जिज्ञासा अर्थात जानने की इच्छा थी कि जीवन सार क्या है उसे समझने के लिए या उस सर तत्व को पाने के लिए हमें उसकी गहराइयों में उतरना होगा पर कबीर साहब स्वयं को समझाते हुए उपरोक्त पंक्ति में कहते है कि मुझसे यह नही हो सका। इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि जिन लोगों ने भी जीवन सार समझने के उद्देश्य साहस और हौसलें से कदम नही बढ़ाया वह सभी लोग डरे हुए थे कि कही हमारा संसार या हमारा सामान्य जीवन कहीं खो न जाए। इसलिए उन लोगों ने जोख़िम उठाने का साहस ही नही किया और वह सभी उस सार तत्व रूपी जल धारा के किनारे पर ही बैठे रहे अंततः जीवन समाप्त हो गया।
मित्रों ,कबीर साहब यह पंक्ति किसी दूसरे पर न कह कर खुद पर कहते है पर इसके अर्थ की व्यापक्ता सर्वसाधारण को भी प्रेरित करते हुए पूर्ण रूप से यह समझाने का प्रयास करती है कि यदि आप को कोई सामान्य या गुढ़ रहस्य को जानना है तो आप को खुद से ढूढ़ना होगा।
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