अपने बारे में
मित्रों ,
मैं, मृत्युंजय कुमार सिंह ,आप का दोस्त,एक दार्शनिक, प्रेरक और आध्यात्मिक विचारो से ओत-प्रोत विषय लेकर आप सभी के समक्ष प्रस्तुत हूँ ,आप को यह जानकारी देना चाहता हु कि मैंने अपने ब्लाँगर साइट का कबीराकाशी जो नाम दिया हैं उसके पीछे क्या कारण है ?
धीरे-धीरे अध्ययन और सत संगत करने पर श्री कबीर साहब के विषय में बहुत सी जानकारियाँ प्राप्त हुई । फिर एक दिन मुझे श्री कबीर साहब के उपदेशों को प्रचारित करने का स्वयं से इच्छा हुई ,अपने इस विचार को मैं अपने एक अभिन्न मित्र से साझा किया तो उन्होंने मुझे बताया कि श्री कबीर साहब के द्वारा कही गई एक-एक दोहो पर विश्वविद्यालयों हिंदी विषय में शोध कार्य होते हैं, तब मैंने अध्ययन करना शुरू किया और पाया कि कई किताबों में कई लेखकों द्वारा श्री कबीर साहब के विचारों को बहुत ही संकीर्ण रूप में अनुवादित किया गया हैं, फिर मुझसे रहा न गया और मैंने कबीराकाशी के नाम से श्री कबीर साहब के दोहों ,चौपाइयों ,सोरठा ,छंद इत्यादि का और उनके विचारों का प्रचार-प्रसार तथा सही व्याख्या/विवेचना करने का निर्णय लिया ,जो आप सब के सामने है। आप सभी से विनम्र अनुरोध हैं कि जहाँ कहीं भी व्याख्या में और विचारों में त्रुटि समझ में आये निःसंकोच मुझें सूचित करने की कृपा करें ,मैं आप का सदैव आभारी रहुँगा।
मित्रों ,आप में से ज्यादातर लोगो को ज्ञात होगा कि आज से लगभग ६०० वर्ष पूर्व काशी (आज वाराणसी या बनारस ) में महान संत श्री कबीर दास जी का जन्म हुआ था। कबीर दास जी ने अपना गुरु, प्रसिद्ध हिन्दू महात्मा श्री रामनंद जी को माना था। भारत में उस समय मुग़ल शासकों का साम्राज्य चारो ओर फैला हुआ था। समाज ढेरों प्रपंच , कटुता ,आडम्बरो से भरा पड़ा था ,कुरीतियों से घिरे समाज में महान संत श्री कबीर दास जी ने समाज को वेहतर उपदेश किया। श्री कबीर दास जी ने समाजिक क्रिया कलापों और धार्मिक गतिविधियों पर ,समाज के अग्रणीय लोगो को अपने उपदेशों में बहुत ही कठोरता से फटकार लगाई चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान हो। श्री कबीर दास जी ने सामाजिक हितों का खूब लालन-पालन किया। उन्होंने हिन्दू के धार्मिक मुखियाँ ब्राह्मणो को आडम्बरो के लिए जितनी फटकार लगाई ,उतना ही मुसलमानों के धार्मिक प्रमुख मौलाओ को भी डांटा। श्री कबीर साहब अपने तत्कालीन परिवेश में कड़े सामाजिक टीकाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। तत्कालीन समाज में फैले कुरीतियों के ख़िलाफ़ लड़ते-लड़ते श्री कबीर दास जी को बहुत सारा विरोध भी झेलना पड़ा परन्तु श्री कबीर साहब आत्मज्ञानी ,तत्वदर्शी और एक तपे हुए ईश्वर भक्त थे, उन्होंने अपने स्वयं की विचार धारा को न तो कभी प्रचारित करना छोड़ा और न ही किसी समुदाय विशेष से डरे। श्री कबीर दास जी का स्वयं पर और आध्यात्मिक जगत पर इतनी गहरी पकड़ थी कि जिस किसी ने भी उनसे तर्क किया वह उनका मुरीद हो गया। जीवन के हर पहलू पर श्री कबीर दास को मजबूत मानसिक अनुभव था, जो उनके द्वारा बोले गए दोहा ,सोरठा और निर्गुणो में स्पष्ट झलकता है। श्री कबीर दास जी ने अपने जीवन में सादगी को बढ़ावा दिया। वह सदैव सादा जीवन और उच्च विचार को प्रेरित करते थे। श्री कबीर साहब आध्यात्म में इतने प्रवीणता से लगे कि उनको माया रूपी बन्धन कभी छू भी न सका । मैं जब अपने विद्यार्थी जीवन में था तभी श्री कबीर साहब के दोहो से मैं इस तरह से प्रभावित हुआ कि मेरे मन में श्री कबीर साहब के प्रति अपार श्रद्धा का भाव पनप उठा और जब मुझे काशी में निवास करने का अवसर मिला तब से तो मानो वह श्रद्धा श्री कबीर साहब के प्रति भक्ति में पर्णित हो गई।
धीरे-धीरे अध्ययन और सत संगत करने पर श्री कबीर साहब के विषय में बहुत सी जानकारियाँ प्राप्त हुई । फिर एक दिन मुझे श्री कबीर साहब के उपदेशों को प्रचारित करने का स्वयं से इच्छा हुई ,अपने इस विचार को मैं अपने एक अभिन्न मित्र से साझा किया तो उन्होंने मुझे बताया कि श्री कबीर साहब के द्वारा कही गई एक-एक दोहो पर विश्वविद्यालयों हिंदी विषय में शोध कार्य होते हैं, तब मैंने अध्ययन करना शुरू किया और पाया कि कई किताबों में कई लेखकों द्वारा श्री कबीर साहब के विचारों को बहुत ही संकीर्ण रूप में अनुवादित किया गया हैं, फिर मुझसे रहा न गया और मैंने कबीराकाशी के नाम से श्री कबीर साहब के दोहों ,चौपाइयों ,सोरठा ,छंद इत्यादि का और उनके विचारों का प्रचार-प्रसार तथा सही व्याख्या/विवेचना करने का निर्णय लिया ,जो आप सब के सामने है। आप सभी से विनम्र अनुरोध हैं कि जहाँ कहीं भी व्याख्या में और विचारों में त्रुटि समझ में आये निःसंकोच मुझें सूचित करने की कृपा करें ,मैं आप का सदैव आभारी रहुँगा।
मित्रों ,मैं एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहता हूँ जिसकी परिकल्पना कबीर साहब ने की थी। कबीर साहब चाहते थे कि अपने समाज में रहने वाला हर आदमी पहले मानव हो और अंत में भी मानव हो। कबीर साहब की विचार धारा के अनुसार एक ईश्वर ही सबका ईश्वर ,एक धर्म मानव धर्म और एक जाति भारतीयता ही हम सबकी जाति होनी चाहिए।
मित्रों ,आज हमारा समाज जितने धर्मो, जातियों और मत-मतान्तरों में विभक्त हैं, इससे किसी का भी भला नहीं होने वाला है।
मृत्युंजय
मो.न. 9936351423
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