विचारों की शक्ति
विचारों की शक्ति
मित्रों ,इस लेखन को पढ़ने पर सबसे पहले हमारे मन में प्रश्न आता हैं कि विचार हम किसे कहते हैं ? मित्रों, आप सब ने महसूस किया होगा कि हमारा मस्तिष्क निरंतर किसी न किसी परिकल्पना में लगा रहता है या हम कह सकते है कि हम सभी के मनस पटल पर निरंतर कुछ ख्याली तरंगे उठती रहती हैं। हमारे मन में समय ,परिस्थिति और आवश्यकता के अनुरूप कुछ न कुछ ख़्याल हर समय चलते रहते है जिसमे से बहुत से ख़्याल अर्थात सोच समय, परिस्थिति और आवश्यकताओ के साथ ही समाप्त हो जाते है परन्तु कुछ सोच हमारे मन मस्तिष्क में बने रह जाते है और उन सोचों का हमारे मन पर इतना गहरा प्रभाव होता है कि हमारा मस्तिष्क उन्ही को आधार बनाकर जीवन के छोटे-बड़े फैसले लेने लगता है उन्हें हम विचार कहते है।
अतः वह सोच-समझ जिनको आधार मान कर हम अपने जीवन में फैसले लेते है और आगे बढ़ते है ,उन्हें हम विचार कहते है।
मित्रों ,आप ने देखा होगा कि समाज में एक ही विषय पर अलग-अलग लोगों के अलग-अलग विचार होते है। एक ही परिवार ,एक ही स्थान, एक ही परिवेश में रहने वाले लोग अलग-अलग वैचारिक पुंज लेकर अपना-अपना जीवन यापन करते है।
जिन वैचारिक पुंजों के आधार पर कोई व्यक्ति आपने जीवन पथ पर आगे बढ़ रहा है वही उसकी विचार धारा कही जाती है।
सामान्य मानव मस्तिष्क में वैचारिक पुंजों का निर्माण समय ,परिस्थिति और आवश्यकताओ के अनुरूप ही होता है। वैचारिक पुंजों अर्थात विचार धारा को दो मुख्य भागों में बांटा गया है।
1. उच्च विचार धारा
2. निम्न विचार धारा
उच्च विचार धारा:- इस वैचारिक स्थिति को हम निर्माणकारी विचार धारा भी कहते है ,यह विचार धारा सामान्य लोगों में और सामान्य रूप यदा-कदा ही विकसित हो पाती है। इसके लिए मानव को कठोर परिश्रम एवं विशेष त्याग की आवश्यकता है। उच्च विचार धारा को धारण करने वाले लोगों का जीवन अपने आप में धन्य होता हैं। उच्च विचार धारा को धारण करने वाले व्यक्ति से समाज को कभी भी किसी प्रकार के नुकसान की संभावना नही होती। इस विचार से सम्पन्न लोगों का सम्पूर्ण जीवन संसार के हितों पर निछावर होता है।
निम्न विचार धारा:- सामान्य रूप से ,सामान्य परिस्थिति में हम सभी मानव निम्न वैचारिक स्थिति में ही उत्पन्न होते है और उसी स्थिति में सम्पूर्ण जीवन निर्वाह करते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं परन्तु सामान्य मानव अर्थात निम्न वैचारिक स्थिति को धारण करने वाले लोगों में उच्च वैचारिक प्रवृति को धारण करने की अंनत संभावना होती है। अतः जिस प्रकार से बालक के रूप में पैदा होने पर कोई भी बिना पढ़े कक्षायें पास नही करता ,उसी प्रकार उच्च वैचारिक स्थिति को धारण करने के लिए परिश्रम और त्याग की जरूरत होती है। निम्न वैचारिक स्थिति वाले लोगों को स्वयं से स्वयं को ख़तरा होता है,इस कारण से ऐसी वैचारिक स्थिति वाले लोग भी उच्च वैचारिक स्थिति वाले लोगों को अनायास ही प्रेम करते है।
विचार धारा व्यक्ति के जीवन मूल्यों का निर्धारण करती है , इस दुनियाँ में हर व्यक्ति की एक विशेष विचार धारा होती है ,विचार धारा आप की कार्य प्रणाली तथा कार्य प्रणाली आपकी आदत बन जाती है और आप की अच्छी आदतें आपके जीवन में विकास का मार्ग प्रसस्त करती हैं। आप की अच्छी आदतें ही आप के जीवन में सम्बृद्धि लाती हैं।
मित्रों ,आप विचार करें तो आप को अनुभव होगा कि हम सभी का पूरा जीवन अलग -अलग प्रकार की आदतों का एक क्रम है ,इन आदतों को एक समय क्रम में दुहराना और उसी के इर्द -गिर्द जीवन के काल खण्ड को व्यतीत करना ही हमारे जीने का तरीका है इसी में हम अपना भिन्न भिन्न लक्ष निर्धारित कर उसे प्राप्त करते है तथा समाज में लोगों द्वारा हमें उसी का सम्मान मिलता है।
परिस्थिति के कारण उत्पन्न मित्रता परिस्थिति बदलने पर भंग हो जाती है पर वैचारिक मेल से उत्पन्न मित्रता जीवन प्रयंत चलती रहती है।
विपरीत समय काल या विपरीत परिथिति में भी अपने विचारों की श्रेष्ठता बनाये रखने वाले अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करते हैं।
आप खुद से सौ बार रूठ जाए अच्छा हैं पर आप के विचार एक बार भी टूट जाए ,यह ठीक नही है।
श्रेष्ठ अथवा उच्च विचारों को आप स्वयं में जीवंत होने दे, जीवन स्वतः में श्रेष्ठता को प्राप्त हो जायेगा।
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