सफलता
(कबीर साहब के शब्दों में ) भाग -1
मित्रों, हम मानव, इस धरती पर उत्पन्न होने वाले प्राणियों में सर्वश्रेठ क्यों कहे जाते हैं ? इसके पीछे कारण है कि प्राकृतिकऔर कृत्रिम परिवर्तनो को झेलने एवं उन पर जीत हासिल करने की जो क्षमता हम मनुष्यों में है अन्य किसी प्राणी में नही है। हम मनुष्यों में प्रकृति ने इतनी खुबियाँ भरी हैं जो हमें हर तरह की मुश्किलों का सामना करने में सहायक हैं , हम मनुष्यों ने जिस प्रकार से विपरीत परिस्थितियों का सामना किया और सफलता हासिल किया है वह हमें श्रेठ बनाने को पर्याप्त हैं। हमारा इतिहास हमे वीर ,साहसी एवं सफल प्राणी के रूप में उद्धबोधित करता है। लेकिन जब हम अपनी बाल अवस्था को पार कर धीरे-धीरे अपनी किशोरावस्था और उसके बाद पूर्ण युवा अवस्था को धारण करते है तब हमारे सामने तमाम परिवारिक, सामाजिक चुनौतियाँ आकर खड़ी हो जाती है, उस समय हम उन संसाधनो को जो हमने अपने समाज, परिवार एवं व्यक्तिगत रूप से प्राप्त किया, उन्हें को लेकर अपने कर्तव्य क्षेत्र ने भाग्य आजमाने उतर पड़ते हैं। उस समय हमें सामाजिक समूह में रहते हुए भी व्यक्तिगत तौर पर अपने और अपनों के लिए कुछ करने की जरुरत होती है। हममें से बहुत से लोगों के पास पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होते हैं और वे लोग अपने दाईत्वों का निर्वहन करने में सफल हो जाते हैं परन्तु बहुत से लोग हैं जिनके पास व्यक्तिगत तौर पर और सामाजिक तौर पर संसधान के नाम पर कुछ भी नहीं होता, उन लोगों को उस समय ऐसा महशूस होता है मानो उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा हो। देखते ही देखते युवापन का जो जूनून उनके भीतर उफ़ान भर रहा होता हैं वह शांत होने लगता है। जब की ऐसा होना नहीं चाहिए कारण कि मुस्कुराना,हसना और प्रसन्न दिखाई पड़ना हमारी स्वभाविक स्थिति है। जिम्मेदारियों का एहशास होते ही सामान्यतया इंसान संघर्ष करना शुरू कर देता है।अपने कर्मो से हम सभी अपने और अपनों की सारी इच्छाएं पूरी कर देना चाहते हैं पर हम सभी हाथ-पाँव वही तक मारते जहाँ तक हमारे संसाधन हैं। इसी आपा-धापी में कई बार हम सफल तो कई बार असफल होते है।
मित्रों , जिस कार्य में भी हमें सफलता चाहिए या जिस काम में हम सफल होना चाहते हैं ,उस काम में पूर्ण प्रवीणता ही हमारे सफल होने का प्रथम प्रमाण होता है।अब कबीर साहब ने हम सभी को सफल होने का जो सूत्र दिया है हम उस पर चर्चा करते हैं। मैं आपको जीवन में हर कार्य में सफलता का जो सूत्र कबीर साहब ने अपने साहित्य में गाया उसे व्याहारिक रूप में रखना चाहता हूँ।
मित्रों,कबीर साहब का दोहा :-- एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए।
जो गहि लेवे मूल को,फले-फुले अघाए।।
इस दोहे में कबीर साहब कहते हैं "एक साधे सब सधे"जब हम मुश्किल में होते हैं तो हमारा मस्तिष्क काम नही करता और उस समय हम यह नही सोच पाते कि पहले क्या करना चाहिए और क्या बाद में, इसलिए कबीर साहब ने पहले ही यह समझा दिया कि जो भी करना एक-एक कर क्रमवार करना। जब भी आपको कोई काम करना हो तो उस काम को करते समय एक-एक कर साधना /ध्यान लगा कर हल करना अर्थात जब आप एक-एक कर क्रमवार ध्यान देंगे तो वह काम आवश्य सफल होगा।"सब साधे सब जाए "का अर्थ है कि अगर भूल बस आपने सब को एक साथ ठीक करने की कोशिश की तो गड़बड़ हुआ, तब कबीर साहब कहते है कि सब एक साथ करने पर सब कुछ चला जायेगा अर्थात असफल होना तय है। "जो गहि लेवे मूल को ,फले फुले अघाए "का शाब्दिक अर्थ है गहि लेवे (इस प्रकार पकड़ना की छूटे न )मूल(वृक्ष की वह जड़ जिसके न होने से वृक्ष का कोई वज़ूद न हो )को अर्थात जिसने अपने उद्देश्य रूपी वृक्ष के प्रमुख जड़ को पकड़ लिया हो ,वह उस कार्य के सफलता के पश्चात अपने किये गए कर्मो के परिणाम का स्वाद निश्चित रूप चखेंगा अर्थात अगर उपरोक्त नियम के हिसाब से आप एक-एक कर क्रमवार कर्म करेंगे सफलता निश्चित है। क्रमशः ...... मृत्युंजय
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