वही करें जो उचित हो -3
मित्रों ,आशा करता हूँ कि आप प्रसन्न होंगे। जीवन में पाने और खोने को बहुत कुछ हैं पर हमे विचार करना चाहिए कि जीवन में जो भी करते हैं वह सब आनंद ,प्रसन्नता ,सुख ,ख़ुशी के लिए ही करते हैं लेकिन कई बार आप ने देखा होगा कि जो काम हम कर रहे हैं उसका आरम्भ तो हमने प्रसन्नता पूर्वक किया पर करते -करते न जाने कब उसमें विषाद ,क्रोध, दुःख ,इत्यादि पैदा हो जाते हैं यह बात समझ में नही आता, हम सभी लोग ने अपने जीवन में यह अनुभव निश्चित रूप से किया होगा। मित्रों ,मानव जीवन का उद्देश्य निःसंदेह प्रसन्नता ,खुसी ,आनन्द ,और सुख प्राप्त करते हुए जीवन गुजरना ही है मगर ये तकलीफ़ ,परेशानी ,मुश्किल न जाने कहाँ छुपी रहती हैं और हमारे जीवन के मधुर रस में विष घोलती रहती हैं आख़िर इसका क्या कारण हैं ? अंततः हम जो कुछ भी करते हैं वह सब कुछ अच्छे ,भले के लिए ही करते हैं, खुसी और प्रसन्नता के साथ करते हैं मगर हमारी मुस्कुराहट उस काम को करते हुए और नियमित दिनचर्या में आख़िर गायब कहाँ हो जाती हैं ? आज हम इसको समझेंगे। मित्रों, सबसे पहले तो हमें सुबह सो कर उठने के बाद हमेशा यह याद करना चाहिए कि आज हमें पुनः एक नया जीवन उपहार स्वरुप मिला हैं और इस आज के जीवन को भरपूर प्रसन्नता के साथ जीना हैं तथा इस आज के जीवन में कोई भी मुश्किल ,परेशानी हमारी मुस्कुराहट नही छीन सकती। वैसे भी आप विचार करें तो आप जान जाएंगे कि खुश रहना ,मुस्कुराते रहना स्वभाविक हैं अर्थात प्राकृतिक हैं या यूँ कहे कि हम मनुष्य को प्रकृति ने ही मुस्कुराने की शक्ति से भर के भेजा है , मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आप ने कभी भी किसी गधे को मुस्कुराते हुए नहीं देखा होगा।एक ख़ास बात और आप सब को जान लेनी चाहिए कि इस दुनियाँ में किसी भी इंसान के ऊपर कभी भी इतनी बड़ी मुसीबत आई ही नही जो हमारी मुस्कुराहट छीन लें। जीवन में ढ़ेरो मुसीबतों के पहाड़ टूटने के बाद भी आपने किसी ऐसे व्यक्ति को नही देखा होगा जो फिर से मुस्कुराया न हो लेकिन वास्तविक जीवन में तो लगता है कि हम कई बार मानव होना ही भूल जाते हैं और खुद से ही बहुत छोटी -छोटी मुश्किलों पहाड़ बना लेते हैं अगर हम वास्तव में ठहर कर ,थम कर ,शान्त हो कर विचार करें तो मुश्किलों से पर पाना और मुस्कुराते हुए समस्या को बौना साबित करना इतना कठिन नही है जितना कि मुश्किल बनाया गया हैं। मेरी एक कविता सायद आप को मुश्किल वक्त पर याद आये। एक -एक पग चलुंगा साथी पर रुकना मंजूर नही, सर क़लम होता तो हो जाए पर झुकना मंजूर नहीं। गर मुश्किल आती तो आये उससे भी गुरेज़ नही करता, ऐ तूफ़ा वेग थाम ले अपना मैं पीछे क़दम नही करता। मंज़िल की डगर भले कठिन हो ,साहस से क़दम बढ़ता हूँ , दुर्गम-दुरुह सी राहो पर मस्ती से चलते जाता हूँ। जब तक फ़तह नही कर लेता तब तक दम नही भरता, ऐ तूफ़ा वेग थाम ले अपना मैं पीछे क़दम नही करता। ऐ घनघोर घटा मत डरा मुझे, मुझ पर तेरा असर नही होगा , मैं तब तक नही रुकने वाला जब तक पूरा सफ़र नही होगा। अपनी हद पाने से पहले तक ,मैं संघर्ष ख़त्म नही करता, ऐ तूफ़ा वेग थाम ले अपना मैं पीछे क़दम नही करता। मृत्युंजय
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