. वही करें जो उचित हो -2
पिछले ब्लॉग में आप सब को कर्म और उसके फल के बारे में पढ़ाने को मिला तथा आप को अंत में पछतावा के बारे भी जानकारी प्राप्त हुई। मित्रों इस जीवन में जो कुछ भी अच्छा-बुरा हमारे साथ होता हैं उन सब का सम्बन्ध हमारे सोच और कर्म से सीधा -सीधा है अतः हम सब को इस पर विचार करना चाहिए। आप देखिये कि कैसे सोच और कर्म हमारे कर्म फल को बदलते है. एक बार की बात है मेरे एक मित्र सोमनाथ एक दिन टहलते हुए रास्ते से जा रहे थे, उन्होंने देखा एक आदमी जो मोटर साइकिल से जा रहा है और उसका पर्स उसके पॉकेट से गिरने वाला है ,सोमनाथ उसे आवाज़ देता हैं भाई तुम्हारा पर्स ,वह आदमी अपना पर्स सम्भाल लेता है और मुस्कुराकर धन्यवाद करता है ,दोनों सुखद अनुभव में खो जाते है। एक खुसी का महौल बनाने,गौरव की अनुभूति प्राप्त करने और सबसे बड़ी बात किसी अजनवी के चेहरे पर अपने सोच और कर्म से मुस्कुराहट लाना, सोमनाथ को संतोष दे गया। वह संतोष, वह खुशी, सोमनाथ को आनंद से भर दिया। यह वही सोमनाथ था, जिसे पहले से पता था कि किसी का कुछ भी नही लेना चाहिए फिर भी इसकी सोच में कहीं न कहीं लोभ था कि एक साल पहले सोमनाथ एक आदमी का ट्रेन में छूटा हुआ पर्स उठाया था और उसमें उसे तीन सौ रुपये मिलें ,उस तीन सौ रुपये को सोमनाथ और उसके मित्र ने बिना सोचें समझे नाश्ते पर ख़र्चे थे और तीन दिनों तक पेट की बीमारी से परेशान थे और जब चौथे दिन फिर ड्यूटी जाते समय सुना , एक आदमी कह रहा था कि मेरा पर्स तीन रोज़ पहले इसी ट्रेन में गिर गया और मैं बिना रुपयों के हो गया जिसके कारण मुझे पैदल ही घर तक चार किलोमीटर जान पड़ा। यह सुनकर सोमनाथ अपने अंदर ही ग्लानि से भर गया था। इस तरह हम देख सकते हैं कि एक बार वही आदमी अपने ही सोच और कर्म से दुःख और विषाद पैदा कर देता है और वही आदमी स्वयं के कर्मो से ही आनंद और खुसी का अनुभव करता है। इसलिए मित्रों आपको और हम सभी को इस प्रकार का काम करना चाहिए जिससे हमारा और हमारे आसपास के समाज का माहौल सुखद एवं ख़ुशनुमा हो। स्वयं का और समाज का माहौल शांति और सम्बृद्धि का बने तथा हमारा सम्पूर्ण मानव समाज मानवता की श्रेष्ठ जीवन धार को प्राप्त करें।
क्रमशः
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