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सफलता (कबीर साहब के शब्दों में ) भाग -2

 सफलता 
      (कबीर साहब के शब्दों में ) भाग -2

                                                                                                                                                                                          मित्रों ,कबीर साहब की पंक्तियों को आप जब भी पढ़ेंगे आप को ज्ञात होगा कि यह पंक्तियाँ अपने में विशेष आध्यात्मिकता का भाव समेटे हुए हैं। कबीर साहब की पंक्तियों का जितना मुल्य उनके समय में था उतना ही मुल्य आज के आधुनिक समय में भी है। 
          हम जब भी कबीर साहब की पंक्तियों को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से पढ़ना शुरू करते हैं, उन पक्तियों से आध्यात्मिकता  की महक स्वतः फूट पड़ती है। कबीर साहब एक महान संत थे ,वह अपने भक्ति की क्रिया में इतने प्रवीण थे कि जब वह ध्यान की अवस्था में आते तो ईश्वरत्व से एकाकार हो जाते ,उस ध्यानावस्था में स्वतः कबीर साहब के मुख से यह पंक्तियाँ निकल पड़ती थी। 
          आइये अब हम उसी पक्ति को आध्यत्मिक भाव से अर्थ तलाश करते हैं  --
                                                      

                                   दोहा  --   एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए।   
                                            जो गहि लेवे मूल को,फले-फुले अघाए।।

        शब्दार्थ--   साधे (ध्यान से हल करना ), सधे (अपने आप होना /स्वतः हो जाना ), गहि लेवे  (कुछ इस प्रकार पकड़ना की फिर न छूटे  / पूर्ण मनोयोग से समेट लेना ),  मूल (मुख्य कारण /प्रमुख विषय ,जिसकी वज़ह से ही सब हो रहा है ) अघाए  (किसी वस्तु / किसी विषय ,को पाकर पूर्ण तृप्त हो जाना )
      
         मित्रों,अब इस दोहे का अर्थ हो गया कि उस एक को ध्यान से ,सबसे पहले हल करें जो सब समस्याओं का कारण हैं, उस  मूल को कुछ इस प्रकार पकड़ लेना कि सब छूटे पर वह न छूटे ,सारा ध्यान उसी पर लगाना हैं। 
         अब प्रश्न आएगा कि सभी समस्याओ का कारण क्या है ? प्रश्न को और व्यापक बनाते है ,प्रश्न हैं कि जो हमारा मानव जीवन है उसका मुख्य कारण क्या है ? अर्थात वह कौन सा तत्व है जिसके होने से हम है ? क्योकि जो भी समस्याएं हैं वो हमारे होने से ही हैं। अब प्रश्न की व्यापक्ता और विशेष हो गई अब प्रश्न है कि वह क्या है जिसके होने मात्र से हमारा जीवन है और जिसके न होने से सब कुछ समाप्त हो जाता है ?उत्तर आप सब जानते हैं --वह आत्म तत्व ही सभी कारणों का कारण अर्थात सभी विषयों का विषय  है। 


         कबीर साहब उसी अन्तरात्मा का ध्यान करने का प्रवचन कर रहे हैं। उसी अन्तरात्मा को कबीर साहब मूल कहते हैं। कबीर साहब संकेत करते हैं कि अगर आप जीवन की सभी कठिनाइयों से निज़ात पाना चाहते है, आप जीवन में संतुष्ट होना चाहते हैं तो आप अपनी अंतरात्मा का ध्यान करिये,  वही हम सब के जीवन का सार है ,उसके होने मात्र से ही हम जीवित हैं और उसके न होने से सब कुछ समाप्त। अतः आप केवल अंतरात्मा का ध्यान करिये। अंतरात्मा के ध्यान मात्र से जीवन को सारी समस्याएं ,सभी मुश्किलें स्वतः ही दूर हो जाएगी और आपका जीवन पूर्णता को प्राप्त हो जायेगा। उस अंतरात्मा के ज्ञान और ध्यान मात्र से जीवन की विराटता की समझ स्वतः होने लगती है। आपकी अपनी अंतरात्मा के पास आप के जीवन में उपजने वाले सभी अनसुलझे प्रश्नो का उत्तर हैं।
              मित्रों , संतुष्ट हो कर जीना ही हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। पूरे जीवन सभी कर्मो में सफलता हासिल करके भी अगर हम अतृप्त हैं ,तो किसी अर्थ में हमारा जीवन सफल नही  माना जायेगा। यदि हमारा मन ,जीवन किसी भी माध्यम से संतृप्तता से भर गया तो हमें मान लेना चाहिए की" अंत भला तो सब भला"यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।                                                                                                                                                                                                              मृत्युंजय

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