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वही करें जो उचित हो (भाग-1)

                                                   वही करें जो उचित हो -1 


        मित्रों ,
                    हम आज बात करेंगे कि हमें मानव होने और मानवता को आगे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए ?विषय निश्चित रूप से गम्भीर है परन्तु मैंने शीर्ष पर ही लिख दिया कि वही करे जो उचित हो इसलिए यह विषय थोड़ा आसान हो जाता है। आप हम कई बार दुविधा में फस जाते है और हमे समझ में नही आता कि क्या किया जाए और क्या न किया जाए उस स्थित में ये बात मायने रखती है कि आपके द्वारा क्या निर्णय लिया जाता है। निर्णय तो लेना ही होगा आप ज्यादा टाल मटोल नही कर सकते और टाल मटोल किया भी नही जाना चाहिए। आप अगर सोचने में ज्यादा विलम्ब करते है तो आप की कार्य क्षमता पर सवाल होगा अतः आप को निर्णय तो लेना है मगर मित्रो मेरा मानना है कि आप जो भी निर्णय लें वह मानवता को ध्यान में रखकर लें। मित्रों ,आप के कर्मो के परिणाम को तीन भागों में ईश्वरी विधान द्वारा बाटा गया है। पहला--तत्कालिक, दूसरा--अल्पकालिक, तीसरा --दीर्घकालिक। पहला ,जिसे हम तत्कालिक परिणाम कहते है वह वैसे कार्य हैं जिन कार्यो के परिणाम तुरंत आ जाते है इसमें भी परिणाम हल्के और गंभीर हो सकते हैं परन्तु परिणाम जो भी होगा वह बिना समय गवाये आ जायेगा। उदाहरण स्वरूप --आप ने किसी को अपशब्द कह दिया और उसने भी जबाब में आप को कुछ कह दिया ,आप ने आग को छुआ और जल गए। दूसरा--वह कर्म है जिनके परिणाम कुछ समय बाद आते है उनको हम अल्पकालिक कर्म फल कहते है। उदाहरण स्वरूप --आप पूरे साल पढ़ाई किया और आप को वार्षिक परीक्षा में अच्छा अंक मिला ,या आप ने धीरे-धीरे योग का अभ्यास करते रहे और योग के अध्यापक बन गए। तीसरा--वह कर्म जिसे आप करते तो है परन्तु उसका परिणाम आपको दूर तक कही नजर नही आता,उदाहरण स्वरूप --आप ने किसी प्यासे को पानी पीला दिया या आप ने किसी अन्जान आदमी की अनायास ही मदद कर दिया। आप को इन कर्मो के परिणाम तो नही दिखाई दे रहें है परन्तु इसका मतलब यह बिलकुल मत समझिए कि इसके परिणाम नही आएंगे। परिणाम तो आना है वह आकर ही रहेगा। अतः आप से यही निवेदन है की तत्कालिक लाभ या तत्कालिक हानि को देख कर नही बल्कि दीर्घकलिक परिणाम को भी ध्यान में रखकर निर्णय लें और वही करें जो उचित हो।अन्यथा  केवल और केवल पछताना होगा।पश्चाताप भी हमारे कर्मो का ही फल है। .....                     क्रमशः 

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