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तन और मन

                                                                                                                                                                                                      तन और मन    


                    दोस्तों आज बात 'तन और मन' पर होगी। आप सभी ने भारत में अपने बूढ़े -बुजुर्गों से सुना होगा कि            अपने शरीर पर ध्यान दो ,हम सभी इस पर गौर भी करते हैं और अपने शरीर को पुष्ट करने का उपाये समय            -समय पर करते रहते हैं। आप सभी इससे पूर्ण रूप से परिचित है कि शरीर को मजबूत एवं स्वस्थ रखने के            लिए शारीरिक व्यायाम की आवश्यक्ता होती हैं परन्तु हम में से बहुत से लोग ऐसे हैं जिनको मन स्वस्थ रखने             का तरीका नहीं पता हैं। 
         अतः अब हमें यह सोचना और समझना है की मन को किस प्रकार स्वस्थ रखा जाये। अब आपको यह विचार करना है कि आखिर यह मन है क्या ?मन एक संस्था या सिस्टम है जो आप के शरीर की आवश्यक्ताओ  को समझने में और उनको पूरा करने में मदद करता है ,इस प्रकार आप यह कह सकते है की शरीर की मूल जरूरतों को पूरा करने में मन सहायक है। लेकिन आप कहेंगे की मन तो मस्तिष्क के अंदर होता है तो यह किस प्रकार काम करता है? तब आप यह जान ले कि हिन्दू धर्म की धार्मिक पुस्तकों में इसका उल्लेख मिलेगा कि मन इन्द्रियों का स्वामी इन्द्र है और यह जो आपके नाक ,कान ,आँख ,जीभ और त्वचा है इनके माध्यम से सभी सूचनाये लेकर जरुरत के अनुसार कार्य करता है। अब आप को ये जान कर हैरानी होगी कि यह तीन प्रकार से काम करता है। पहला --यह आप के इर्द -गिर्द ,आप के आस-पास की व्योवस्थ या कह सकते है की आप आस-पास के इन्वॉयरमेंट के हिसाब से काम करता है। दूसरो--आप के अपनी जरूरतों के अनुसार अर्थात आप के हिसाब से। जैसे-- आपको प्यास लागे तो मन तुरंत पानी की तलाश में लग जाता है। तीसरा --अपने आप। जैसे-- आप बैठे हो और अनायास ही कुछ सोचने लगे हो या सोते समय सपना देख रहे हो।                                                                                                                                 इस प्रकार आप समझ सकते है कि आप का मन किस तरह काम करता है। अब आप को यह भी जान लेना चाहिए कि मन किस अवस्था में बेहतर कार्य करता है ताकि आप भी प्रयास कर सके  की आप का मन आप के हिसाब से और बेहतर कार्य करे। आप जानलें मन दूसरी अवस्था में सबसे सुन्दर कार्य करता है परन्तु इसके लिए आप को अभ्यास की आवश्कता होगी। आप को यह जानकर हैरानी होगी कि इसका अभ्यास हम सभी किताबों के माध्यम से बचपन से करते हैं परन्तु यह पूर्ण रूप से सही नही है क्यों कि यह भी तो एक वाह्य व्यवस्था ही है जो हमारे मन को बाहर की और ले जाएगी और इससे हमारा मन अपने आस -पास के माहौल के हिसाब से ही चलता रहेगा अतः हमें अपनी सांसो पर ध्यान लगाना चाहिए इससे हमें किसी भी वाह्य विषय या वस्तु की आवश्कता नही होगी। चुकी हम सांसो पर ध्यान लगते समय पूर्ण रूप से खाली  भी नही है इसलिए तीसरी वाले क्रिया से भी बच जायेंगे अर्थात स्वप्न मे भी नही जायेगे । इस प्रकार से आप अपने तन के साथ -साथ मन भी स्वस्थ करें क्यों कि अगर तन और मन में से कोई भी अस्वस्थ हो गया तो आप अपने को स्वस्थ नही कह सकते जैसे -आप के अपने कम्प्यूटर का हार्डवेयर (तन )खराब हो या सॉफ्टवेयर (मन )खराब हो वह चलने में परेशानी पैदा करता है और आप उसे ठीक नही कह सकते उसी प्रकार तन या मन अस्वस्थ होने पर आप अपने को स्वस्थ नही कह सकते है। 
                                                                                                                                                     क्रमशः 

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