आओ कुछ अच्छा करें (भाग - 3)
दोस्तों ,हम सब आज जिस दुनियाँ में जीवित हैं और जिस दुनियाँ को हम मानव अपने हिसाब से नियन्त्रित एवं संचालित करने की कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे हैं इस विषय पर आज हम विचार करेगें ,आज हम मानव ,जो संसार का सर्वश्रेठ प्राणी है ,की आजादी और उसके आजादी के उपयोग एवं दुरुपयोग के बारे में चर्चा करेंगे। मित्रों हम मनुष्य निश्चित रूप से संसार के सबसे अधिक क्षमतावान प्राणी है,हम वास्तव में इस संसार के प्रथम उपभोग के अधिकारी है और हम अपनी क्षमता को देखते हुए यह कह सकते है कि अगर भगवान ने इस संसार को बनाया है तो उसकी सभी निर्माण पर,सभी कृतियो पर सबसे पहले हमारा ही अधिकार है,यह उचित भी है क्यों की हम सबसे ज़्यादा समझदार भी तो है। मित्रों हम अपने अधिकार को तो जानते है परन्तु उस प्रथम उपभोग अधिकार के साथ ही कुछ कर्त्तव्य भी जुड़े जिसके बारे में हम सबको ज्ञात होना चाहिए लेकिन आज ही नही सदियों से यह होता आ रहा कि हम अपने अधिकारों के प्रति तो बहुत सजग रहते है पर बात जब कर्त्तव्यों की होती है तो कहीं न कहीं दुबके हुए दिखाई देते है। आज के मानव समाज में तो यह बहुतायत देखने को मिलता है कि ज़्यादातर लोग समाजिक एवं प्राकृतिक रूप से केवल और केवल उपभोग के चिंता करते हुए मिलते है। मित्रों आप जानते है की एक कुश्ती करने वाला पहलवान कितना भोजन खुराक लेता है पर वह अपने मेहनत से सब कुछ पचा लेता है और वही जो लोग मेहनतकस नहीं हैं उन्हें दो रोटियां भी भारी हो जाती हैं। इसी प्रकार अगर हम केवल उपभोग की बात करें और कोई कर्त्तव्य कर्म न करें तो एक दिन ऐसा आये गा कि हम किसी भी उपभोग के लायक नही रह जायेगें। अतः हम सभी को सभी प्रकार के प्राकृतिक उपभोगों को करते हुए उसके प्रति कर्तव्यों का भी ख़्याल रखना चाहिए यह प्राकृतिक आप के लिए ही निर्मित है और इसमें कोई संदेह नही है कि आप ही इसके प्रथम उत्तराधिकारी हैं इसलिए हम सब का यह उत्तरदायित्व है कि हम अपने समाज और प्रकृति को सहेजते हुए सर्वोच्च जीवन जीये।
मृतुन्जय
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