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आओ कुछ अच्छा करें (भाग-2)

                                                            आओ कुछ अच्छा करें  (भाग - 2)                                                                                                                                                                                                                                               दोस्तों ,पिछले ब्लाक में हमने समाज के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यो के बारे समझने का प्रयास किया,परंतु आज कोरोना वायरस से जिस प्रकार मानवता को जुझना पड़ रहा है इससे यह साबित होता है कि हमें स्वयं को भी स्वयं के लिए बहुत कुछ करने की जरुरत है उदाहरण स्वरुप हमें अपने खान-पान और रहन-सहन पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्कता है। आज का आधुनिक समाज जो कुछ अच्छा लगता है वह सब खाने में विश्वास करने लगा है परंतु ऐसा नही होना चाहिए मानव समूचे पृथ्वी का सर्वश्रैष्ठ प्राणी है यह कैसे सिद्धि होगा ?आज तक अगर मानवता इस पृथ्वी पर बची है तो उसके लिए बहुत से लोगों का बहुत प्रयास रहा है ,आज हमलोग जिस प्रकार बल्ब का उपयोग कर के उजाले का लाभ ले रहे है लेकिन यह नही जानते कि किसने और कब बल्व का आविष्कार किया तथा बल्व के उजाले का हमारे आँख और मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है उसी तरह से हमलोगों को यह नही पता कि हमारे जीवन में जिन-जिन आधुनिक आचरणों का समावेष होता जा रहा है उसका क्या प्रभाव होगा। आज जिस तरह से हम खाने-पीने की चीजों में बासी चीजों को अपनी सुविधा के लिए प्रयोग में ला रहे है उसका प्रभाव भी अब सामने आने लगा है कोरोना वायरस उसी का परिणाम है। हमे हमारे पूर्वजों से यह सीख मिली हुई है कि बासी चीजें नही खाना चाहिए परन्तु आज की सन्तान इसे स्वीकार ही नहीं करना चाहती जिसका दुष्परिणाम हमारे आप के सामने है अतः हम सबको क्या खाना और क्या न खाना इस बात को भली-भाती विचार करना चाहिए। मैं तो यह भी कहूँगा कि मांस खाना मनुष्य के लिए कहाँ तक उपयुक्त है इस पर भी गम्भीर चर्चा होनी चाहिए।                                                                                                                                                                                                                                        
                                                                                                                           मृत्युंजय  सिंह  

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