आओ कुछ अच्छा करें (भाग - 1)
दोस्तों ,आज के दुनियाँ में हम सभी जिस प्रकार की जीवन शैली अपनाते जा रहे हैं ,वह किसी भी तरह से उचित नही है। आज के मानव समाज में वह सब किया जा रहा है, जो कुछ देर के लिए ही अच्छा लगता है पर उसका बाद का प्रभाव बहुत दुःखदाई होता है। हमें विचार करना चहिये की जो-जो हमें अच्छा लगता है वह सब मानव समाज के लिए ठीक हो सकता है क्या ? इसलिए हमें उचित और अनुचित पर अपनी खुद की समझ पूर्णरूप से विकसित कर लेनी होगी। अतः उचित एवं अनुचित क्या है जानने के लिए सबसे पहले हमें अपनी वैचारिक विवेचना की आवश्यकता है। जो कुछ भी उचित है उसे स्वीकार करना तथा जो अनुचित है उससे मुँह मोड़ना ही होगा। मित्रों ,हम सभी लोगों ने महाभारत के विशाल युद्ध के बारे में पढ़ा या सुना होगा ,महाभारत के युद्ध की कल्पना मात्र से युद्ध के पात्रों की ये छवि मन में उभर आती है। युद्ध की स्थिति में भगवान श्री कृष्ण और दुर्योधन को छोड़ कर बाकि सभी पात्रो को महशूस करें तो आप को ऐसा लगेगा की सभी द्वन्द में हैं। ऐसा कोई पात्र नही है जो युद्ध के मैदान है और दुविधा में नही है। दोनों पक्षों से युद्ध में आये हुए सभी पात्रों के दुविधा के अलग-अलग कारण थे ,परन्तु दुविधा में सब थे। मैं तो यह कहता हूँ कि कुरु क्षेत्र के मैदान में जो युद्ध दिखाई दे रहा था उस युद्ध से बड़ा युद्ध ,उन योद्धाओं के मन-मष्तिस्क में ,विचारों में चल रहा था। सभी योद्धा अपने-अपने पक्ष से लड़ तो रहे थे पर उससे ज़्यादा खुद से लड़ रहे थे। कुरु क्षेत्र के मैदान में आये सभी वीर योद्धा वैचारिक रूप से भी काफ़ी उन्नत और विवेकशील थे परन्तु सबकी बुद्धि धरी की धरी रह गई थी अंततः भयंकर युद्ध हो कर रहा।
हम सभी जानते है कि दुर्योधन की एक अनुचित ज़िद ने पूरा महाभारत खड़ा कर दिया। हम सब को भी उचित-अनुचित का ध्यान रखना चाहिए अन्यथा सामाजिक ढांचा बिगड़ते देर न लगेगी क्यों कि हमारा सम्पूर्ण समाज उसकी मुहाने पर जा खड़ा हुआ है। आज के परिदृष्य में कोई बड़े राज्य का युवराज दुर्योधन तो प्रत्यक्ष नही दिखाई दे रहा है पर यदा-कदा कई छोटे दुर्योधन समाज में दिखाई दे जाते है।जो युद्ध की स्थिति पैदा करने से गुरेज नही करते, वह ऐतिहासिक युद्ध तो समाप्त हो गया पर हम सभी के अंदर आंतरिक द्वन्द का महाभारत लगातार चलता रहा है और चलता ही रहेगा।अब आप सोच रहे होंगे कि आख़िर इस स्थिति में हम सब को क्या करना चाहिए ? हम सब को अपने स्वयं के अंदर बैठे दुर्योधन रूपी अनुचित विचारों पर नियंत्रण पान होगा ,उसको मनमानी करने से रोकना होगा और सत्य (उचित )को स्वीकार करना होगा।
मित्रों खुद के साथ-साथ हम सब को भविष्य को ठीक रखने के लिए हमें बचपन से ही अपने बच्चो को इस बारे में जागरूक करना होगा। जो भी अच्छी बाते हम अपने बच्चों को बतलाते है और जिन -जिन अच्छी बातों को बच्चे अपनी आदत में सामिल कर लेते हैं, उन्हें ही हम संस्कार कहते है अर्थात हमें बच्चो को छोटी उम्र से ही अच्छी बाते बताना आरम्भ कर देना चाहिए ,ताकि वह युवा होने तक अच्छे-बुरे,उचित-अनुचित में फर्क करने में सक्षम हो जाए। आज मुख्य रूप से मैं भारतीय समाज के बारे में बात करुँगा। आज भारतीय समाज का वह हाल हो गया है कि आज के भारत को खतरा किसी परमाणु बम से नही है। भारत को आज अगर ख़तरा है तो खुद अपने नासमझ भारतीयों से है जिनको वास्तव में न तो सभ्य समाजिकता का बोध है और न ही मानवीय मूल्यों का। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भारत विभिन्नताओं से भरा देश हैं परंतु मैं कहना चाहुँगा की अभी-भी अगर बहुसंख्यक भारतीयो ने मानवीय मूल्यों की चिंता नही की तो भारत के विनाश के लिए नासमझ भारतीय ही काफ़ी हैं।अतः अभी से हमें अपने आने वाली पीढ़ी को उच्च मानवीय मूल्यों के बारे बताना प्रारम्भ कर देना चाहिए। जैसे-- वृक्षारोपण के बारे ,पालीथीन का प्रयोग के बारे में,यातायात के नियमों के बारे में ,शिक्षा के बारे में तथा सामुदायिक एवं सामजिक जीवन के बारे में ,राष्ट्रयता की भावना के बारे भारतीयों को बहुत कुछ सीखने और जानने की जरुरत है।आज हम सभी जिम्मेदार भारतीयों को अपने समाज को जागरूक करने का प्रयास करना चहिये ,अगर आप यह करेंगे तो मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि आप कुछ अच्छा कर रहे हैं। ............... क्रमशः
very nice
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