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हमारी ज़िम्मेदारी

                                                                                                           

                                                         हमारी ज़िम्मेदारी  


             आज हम भारत में ही नही बल्की पुरे दुनियाँ में दिनों -दिन बढ़ते हुए प्रदूषण और उसके समाधान पर बात करेंगे। दोस्तों आपको बेहतर मालूम हैं कि हम सब के विचार चाहें कितने भी उत्कृष्ठ एवं उत्तम क्यो न हो पर जब तक वह प्रयोग में नहीं आता तब तक अच्छे विचारो की कोई सार्थकता नही होती फिर भी मानव स्वभाव के अनुरूप हम सब के मन-मस्तिष्क में अनेकों तरह के विचारो का पनपना स्वाभाविक है। मैं आपसे केवल अच्छे विचारो को पढ़ने और उस पर मनन एवं मंथन करने की प्रार्थना करता हूँ।                                                                                            
                           दोस्तों आज आप सभी चाहे दुनियाँ के किसी भी स्थान पर निवास करते हो पर किसी न किसी प्रकार के प्रदूषण से प्रभावित जरूर होंगे।यह प्रदूषण आप को यह सोचने पर मजबूर करता है कि यह प्रदूषण नही होना चाहिए। यह बात अलग है की उसके लिए आप ने या हमने कुछ किया या नही किया परन्तु पूर्णतया स्पष्ट करना चाहूँगा कि अब हम सभी को प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कुछ न कुछ करना ही पडेगा।
                     
                            अब विषय आता है प्रदूषण के नियंत्रित करने के लिए हम क्या कुछ कर सकते है ? मित्रों , हम सभी को ज्ञात है कि समस्या को हल करने से पहले हमें उस समस्या के कारण के बारे में जानना चाहिए फिर निवारण के विषय में विचार करना चाहिए। प्रदूषण पर विचार करते हुए हम यह पाएगे कि प्रदूषण हम मानव द्वारा प्रयोग किए जाने वाले अलग-अलग प्रकार के कृत्रिम वस्तुओं के उपयोग के बाद निस्तारित किया जाने वाला कूड़े का अम्बार ही हैं जिसको हम साफ़ सफ़ाई के माध्यम से कम कर सकते है पर पूरी तरह समाप्त नही कर सकते है। अतः हमें इसको पूरी तरह से इसको समाप्त करने के बारे में सोचना होगा, इसके लिए हमें फिर से विचार करना होगा कि आखिर ये प्रदुषण किन कारणो से विस्तार ले रहा है। तब हम पाते हैं कि जिसे हम प्रदूषण कहते है वास्तव में वो हमारे द्वारा उपयोग या अनुपयोग की हुई वस्तुए है जिनका निस्तारण प्रकृतिक रूप से जल्दी नही हो पा रहा है और जब तक उसका प्राकृतिक (Natural) तऱीके से निस्तारित हो पाता उसके पहले ही हम कुछ और चीजों को कचड़े के रूप में जमा कर देते है। इस प्रकार हम यह कह सकते है कि प्रदूषण हम मनुष्यो के जीवन की अतिउपभोगवादिता का परिणाम है जो गम्भीर रूप धारण कर रहा है और यही प्रदूषण के रूप में हमारे समस्त जीव जगत अर्थात समस्त पृथ्वी वासियों के लिए खतरा बनता जा रहा है।अब हम सब को इस बात पर ज्यादा ग़ौर करने की जरुरत हैं कि जिस वस्तु का उपयोग हम अपने जीवन में कर रहे है वह प्राकृति पर क्या असर डाल रहा है साथ ही हमें यह भी ध्यान देने की जरुरत है कि हमारे द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुए प्राकृति मित्र है या नहीं।                               
                            प्राकृतिक मित्र :  दोस्तों हम किन चीजों को प्राकृतिक मित्र कहेंगे ? अब हम उस पर चर्चा करेंगे। जिन वस्तुओं का प्रयोग के उपरांत उनका निस्तारण प्राकृतिक रूप से कम समय में और आसानी से हो जाता हैं उसे हम प्राकृतिक मित्र कह सकते है लेकिन हमें ध्यान देना होगा कि जिन वस्तुओं का निर्माण जीतने अप्राकृतिक तरीक़े से होता है उनका निस्तारण भी उतने ही अप्राकृतिक और अनुचित तरीक़े  से  होता है। इस तरह तर्क के माध्यम से हमें ज्ञात हो गया कि इस पृथ्वी पर जीतने भी प्राणी है वह सभी प्राकृतिक की ही ऊपज है और इस धरा पर पलने वाले सभी प्राणी जीतना प्राकृतिक रूप से जीवन निर्वहन करेंगे वह उतना ही सुखी रहेंगे। 
                         
                           मित्रों ,हम सभी इस बात को भी भली भाँती जानते है कि मनुष्य को छोड़ कर बाकी किसी भी प्राणी में प्राकृति के विरुद्ध कुछ करने की क्षमता नही हैं केवल हम मानव ही है जो प्रकृति के विरोध में सफलता पूर्वक कार्य करते है। अतः हम कह सकते है कि हम मानव के द्वारा ही अप्राकृतिक उत्पाद बनाना ,उपयोग करना और उसको कचड़े के रूप में पृथ्वी पर जमा किया जाता है। 
                           
                        अब हमें यह जान लेना चाहिए कि प्रकृति को स्वस्थ रखने के लिए किन चीजों को प्रयोग में लाना चाहिए और किन चीजों को नही। उपभोगवादी होना तो ठीक है पर अतिउपभोगवादिता किसी भी तरह से उचित नही है। यदि हम ज़्यादा कृत्रिम चीजों का प्रयोग करेंगे तो निश्चित रूप से ज़्याद अप्राकृतिक चीजों का कचड़ा भी इकठ्ठा होगा और उनका निस्तारण भी अप्राकृतिक रूप से ही करना पड़ेगा और वह भरी प्रदूषण का कारण बनेगा। इसलिए हमें साफ-सफ़ाई के साथ-साथ अनावश्यक वस्तुओं के उपयोग से बचना होगा।   
                         
                      इस प्रकार से हम प्रदूषण मुक्त और एक विकसीत ,श्रेष्ठ मानव समाज की स्थापना कर सकते है। दोस्तों अगर हम कुछ अच्छा करेंगे तो प्रकृति अपने आप हमारे लिए बहुत कुछ करेगी। अतः अच्छा सोचें और अच्छा करें।                                                                                                            
                                                                                                                 -  धन्यवाद- 
                                                                                                                    मृत्युंजय 

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