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जीवन का कठोर सत्य

                                                                     
                                                                    जीवन का कठोर सत्य   (भाग - 8)                                                                                                                                                                                                                                                       और मैं दावे से कह सकता हूँ कि जिस दिन आप को अपने अंतरऊर्जा अर्थात आत्म ऊर्जा या अंतरात्मा का आभास हो जायेगा उस दिन से आप स्वयं को बदला हुआ महशुस करेंगे। इस बदलाव का अर्थ यह नहीं हैं कि आप का शरीर बदल जाएगा नही आप का शरीर नही, आप का व्यवहार आप की सोचने का अंदाज ,आप के स्वयं के विचार और बहुत कुछ जो वास्तव में बदल जाना चाहिए वह सब बदलना प्रारम्भ हो जायेगा।                              जीवन में कई बार प्रसंग आता है ,लोग कहते है '' सदा सत्य बोलना चाहिए ''पर मैं सच कहुँ तो यह मुझे कभी भी याद नही रहा और ना तो मै कभी यह समझ पाया की वास्तविक सत्य क्या है। अतः बार-बार यह कहा जाए की सदा सत्य बोलो केवल इतने से कोई भला कोई कैसे सत्य बोल सकता है ,इसी तरह से अक्सर लोग कहते है कि क्रोध नही करना चाहिए ,क्या इतना कह देने मात्र से लोग मानलेंगे  और क्या जीवन से क्रोध चला जायेगा। वास्तव में ऐसा संभव नहीं हैं। हिन्दू धर्म में इन सब गुणों को ग्रहण करने के लिए कई नियम बनाये गए हैं ,इसी में से एक नियम अष्ठयोग भी है ,अष्टयोग को साधने वाले की शरीरिक ऊर्जा और मानसिक ऊर्जा  इतनी  बढ़ा जाती है कि वह साधारण मनुष्य से विलग उत्तम मानव बनने की ओर अग्रसर हो जाता है और धीरे-धीरे साधक की सकारात्मक ऊर्जा इतनी बढ़ जाती है कि वह ईश्वर तुल्य हो जाता है। .... ........  क्रमशः                                                                                                                                         
                                                                                                                             धन्यवाद                                                                                                                                                        मृत्युंजय  

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