jiwan ka kathor satya
जीवन का कठोर सत्य (भाग - 7) हिन्दू धर्म के धार्मिक सिद्धांतो और तर्कों के आधार पर यह माना जाता है कि समस्त जीव जगत का निर्माण पाँच मुख्य तत्वों से हुआ है ,तर्कों के आधार पर देखने पर यह सही भी है ,छित, जल, पावक, गगन ,समीरा। पांच तत्व से बना शरीरा । परन्तु विचार करने पर पता चलता है कि जीवन केवल पाँच तत्वों का ही संजोग मात्र नहीं है। इसमें एक परम तत्व भी है जो शरीर में जीव के नाम से जाना जाता है। जिसको कबीर साहब कहते है --एक साधे सब सद्ये ,सब साधे सब जाए। जो गहि लेवे मूल को फले-फुले अघाए।। उस एक तत्व को प्रथम बार कैसे देखा जाए ,समझा जाए ,महशुस किया जाए। जब हम मनुष्य अपने स्वयं की बात करे तो हम मनुष्य अत्यधिक बिश्वास अपने दृष्टी पर करते है अर्थात हम जिस चीज को देखते है उसी पर विश्वास करते है और इस बात को यदा-कदा कहते भी है कि जो हमने देखा नही उसे कैसे माने। अब बात आती है देखने की तो हम हर चीज़ को तो देख नही सकते जैसे -अपने आस-पास की हवा को ही हम नही देख सकते तो क्या कहे की हवा नहीं है ,इसी प्रकार खाने की कोई बस्तु मीठा है ,तीखा है या नमकीन है का स्वाद देखकर नही जाना जा सकता ,इस प्रकार की चीजों को हम अपने जीभ से महसूस कर सकते है उसी प्रकार से अपने जीव तत्व को हम अपनी आँख नाक और इन पाँचो वाह्य इन्द्रियों से नही जान सकते, इसी कारण हमें आपने में जीव तत्व होने का एहसास नहीं हो पाता है।इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है की किसी बुखार नापने वाले यंत्र से पेट का दर्द कैसे नापा जा सकता है। अतः हमे अब हमें इस पर विचार करना चाहिए कि हम अपने जीव तत्व के बारे कैसे जाने। इसके लिए हमे सबसे पहले यह मानना होगा कि जीव तत्व हमारे इस शरीर में बिद्यमान है क्यों कि जिस प्रकार से हम गणित ने प्रश्न हल करते समय मानते है की माना संख्या ''क ''है और उत्तर निकाल लेते है उसी प्रकार यहाँ भी करेंगे। अब खोज प्रारम्भ होगी और मैं निश्चित रूप से कहूँगा की आज नहीं तो कल आप को आप के जीव तत्व अर्थात आत्म तत्व का अनुभव जरूर होगा। ....... क्रमशः
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